पीएम ने सबसे पहला हस्ताक्षर किसान सम्मान निधि की फाइल पर किया.योजना में हर साल किसानों को 6,000 रुपये नकद दिए जाते हैं. इसकी 17वीं किस्त के लिए 20 हजार करोड़ का आवंटन किया गया है.
नई दिल्ली. पीएम मोदी 3.0 आज सोमवार 10 जून से एक्शन में आ चुके हैं. पदभार संभालते ही उनका पहला फैसला किसानों के लिए आया. ऐसे में कयास लगने शुरू हो गए हैं कि क्या इस बार केंद्र सरकार किसानों के लिए अपना खजाना खोल सकती है. विश्लेषक इसके पीछे कई वजहें भी बता रहे हैं, लेकिन सबसे बड़ी वजह तो यही है कि देश में किसान आंदोलन की वजह से ही मोदी सरकार की सबसे ज्यादा किरकिरी हुई और आंदोलन वाले राज्यों में चुनावी नुकसान भी झेलना पड़ा. ऐसे में माना जा रहा है कि इस बार किसानों के लिए सरकार कुछ अलहदा फैसले कर सकती है.
बात जब किसानों के हित की आती है तो 3 ऐसे मुद्दे हैं, जो सीधे तौर पर देश के अन्नदाता को प्रभावित करते हैं. अगर मोदी सरकार इन 3 मुद्दों पर कोई मजबूत कदम उठाती है तो निश्चित रूप से किसानों की आमदनी दोगुनी करने में सफलता मिल जाएगी. मोदी सरकार ने जब अपना पहला कार्यकाल शुरू किया था, तभी से यह लक्ष्य बना लिया था कि किसानों की आमदनी दोगुनी करनी है और अभी तक यह काम 50 फीसदी से थोड़ा ज्यादा हासिल हो चुका है यानी किसानों की आय डेढ़ गुनी हो चुकी है. अब बात करते हैं कि वह 3 फैसले कौन से हैं, जो मोदी सरकार को फिर से किसानों का चहेता बना सकते हैं.
किसान सम्मान निधि
पीएम मोदी ने आज पद संभालते ही सबसे पहला हस्ताक्षर किसान सम्मान निधि की फाइल पर किया. इस योजना में हर साल किसानों को 6,000 रुपये नकद दिए जाते हैं. इसकी 17वीं किस्त के लिए 20 हजार करोड़ का आवंटन किया गया है, जो देश के 9.30 करोड़ किसानों को बांटे जाएंगे. अनुमान है कि मोदी सरकार जल्द ही इस योजना की राशि बढ़ा सकती है. दरअसल, राजस्थान सरकार ने इस योजना में अपनी तरफ से 2 हजार रुपये मिलाकर सालाना 8 हजार कर दिया है. इतना ही नहीं चुनाव से पहले ही तमाम रिपोर्ट में दावा किया जा रहा है कि मोदी सरकार किसान सम्मान निधि की राशि 50 फीसदी बढ़ाकर सालाना 9,000 रुपये कर सकती है. बहुत संभावना है कि 1 जुलाई को पेश होने वाले पूर्ण बजट में सरकार इस पर कोई ऐलान कर सकती है.
एमएसपी पर गारंटी सबसे बड़ा दांव
किसानों की आमदनी बढ़ाने की बात आती है तो सबकी निगाहें फसलों के न्यूनतम समर्थित मूल्य (MSP) की तरफ उठ जाती हैं. किसान आंदोलन की वजह भी एमएसपी की गारंटी की मांग ही थी. जाहिर है कि अगर यह इतना आसान होता तो सरकार निश्चित रूप से किसानों की इस मांग को स्वीकार कर लेती. लेकिन, एमएसपी पर गारंटी देना काफी महंगा सौदा है. अनुमान है कि इस पर सरकार को करीब 10 लाख करोड़ रुपये खर्च करने पड़ सकते हैं, जो पूरी अर्थव्यवस्था पर असर डालेगा. हालांकि, सरकार ने 4 फसलों पर एमएसपी की गारंटी देना स्वीकार कर लिया था. इसमें मसूर, उड़द, तुअर दाल के अलावा मक्का भी शामिल है. कयास हैं कि सरकार इस बार किसानों को साधने के लिए एमएसपी पर गारंटी इस सीमा को बढ़ा सकती है या फिर बीच का कोई रास्ता खोज सकती है.
उर्वरक पर सब्सिडी बढ़ाना
मोदी सरकार के लिए एक और चुनौती इंतजार कर रही है उवर्रक सब्सिडी की. किसानों का फसल पैदा करने में सिंचाई और बीज के बाद सबसे ज्यादा खर्चा उर्वरक पर ही होता है. मोदी सरकार ने पिछले वित्तवर्ष में उर्वरक पर सब्सिडी काफी घटा दी थी और देश में ही उर्वरक का उत्पादन करने पर जोर दिया था, ताकि किसानों को सस्ती दरों पर उर्वरक उपलब्ध कराया जा सके. हालांकि, जब तक यह कोशिश परवान चढ़ेगी, तब तक अगर किसानों पर उर्वरक का बोझ आया तो उनकी नाराजगी बढ़ सकती है. लिहाजा नई सरकार के लिए यह जरूरी होगा कि उर्वरक सब्सिडी का दायरा एक बार फिर बढ़ाया जाए. आपको बता दें कि बीते वित्तवर्ष 2023-24 में जनवरी तक सरकार ने 1.71 लाख करोड़ की उर्वर सब्सिडी दी थी. इससे पहले के साल 2022-23 में उर्वरक सब्सिडी 2.55 लाख करोड़ रुपये थी. ऐसे में कयास हैं कि इस बार भी सरकार उर्वरक सब्सिडी के लिए अपना खजाना खोल सकती है.
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